अनोखा बंधन
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अनोखा बंधन की इस पुस्तिका में उन सभी रिश्तों के बारे में ‘है जो हर इंसान की जिंदगी से कहीं न’ कहीं जुड़े होते हैं’ कोई न कोई घनिष्ठता या लगाव जरुर होता है,फिर चाहे वो भाई-बहन का रिश्ता हो या फिर पति-पत्नी प्रेमी-प्रेमिका मां-बेटी या दोस्त का ‘हो या कोई अन्य रिश्ता हो अपनी सोंच से परे हो, लेकिन वो अद्भुत और अकल्पनीय हो जो’ कि उस रिश्ते से अनोखा बंधन हो। इन सभी रिश्तों के बारे में इस पुस्तिका में वर्णन किया गया है।
कुछ अनोखे से एहसास तेरे-मेरे दरमियां ऐसे जुड़े न’ सगे न’ जाने-पहचाने बस मुझे अनोखे बंधन से लगने लगे दिल की हर धड़कन में उतर कर बस मन की गहराईयों में बसते चले गये उन्हीं एहसासों से मेरी सांसों में इक रस बनकर के’ घुलते चले गये, मैं उन एहसासों में अपनी सुध-बुध को खोकर उसमें समाहित होती चली गयी।।
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