गुड़िया
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बेटियाँ जिनको प्यार से घर परिवार के लोग गुड़िया कहते हैं। जिनकी एक हँसी से घर का आँगन चहकने लगता है। जिनके बिना हर रिश्ता और हर त्योहार अधूरा रहता है। जन्म से मृत्यु तक तमाम पड़ावों पर उस गुड़िया के रिश्ते नाते, खुशी, संघर्ष को इस पुस्तक में लिखा गया है
बेटियों की जितनी अहमियत घर परिवार और रिश्तों में होती है उतनी ही देश और समाज निर्माण में होती है। उसी पहलू को बताने के लिए इस पुस्तक को संकलित किया गया है। इसमें आपको बेटी के परिवार जनों के साथ रिश्ते समाज में रूढ़ि वादिता, पूर्वगृह, विभेद जैसे कुरुतियों से झूझते हुए जीवन पर प्रकाश डाला गया है।
इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य गुड़िया की के प्रति पूर्वा ग्रहों, विभेद और तमाम सामाजिक आपराधिक मनोवृति पर कटाक्ष किया गया है। एक तरफ हम बेटी को प्यार से गुड़िया, लक्ष्मी न जाने किन किन नामों से पुकारते हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ उसके हिस्से में काटें भी बोये जाते हैं।
आशा करती हूँ यह पुस्तक पाठकों की आशाओं पर खरी उतरेगी।
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