जननी शक्ति का केंद्र बिंदु
₹349.00
‘जननी’ के कई रूप होते हैं। वो नदी हो सकती है, वो धरती हो सकती है, वो एक कन्या हो सकती है, वो एक स्त्री हो सकती है, वो एक पंक्षी हो सकती है, वो पेड के रूप में हो सकती है,वो प्रकृति के किसी भी रूप में हो सकती है। लेकिन इन सब में एक गुण समान है और वो है, सृजन की शक्ति।
प्रकृति में हमारे सामने जो कुछ भी है उसका कारण है सृजन। और सृजन होता है शक्ति से। इस तरह जननी एक शक्ति है और शक्ति इस संसार में केंद्रीय रूप में विद्यमान है।
लेकिन दुर्भाग्यवश लोग इस जननी की महत्ता को भूल जाते हैं। साथ ही वो भूल जाते हैं कि जिस जननी को वो भोगना चाहते हैं या भोग रहे हैं, जब उसकी सहन शक्ति की सारी सीमाएं पार हो जाती हैं तो फिर क्या वो उस जननी की विनाशक क्षमता को झेल सकते हैं, उसके प्रभाव से बच सकते हैं, जो सृजन करती है।
जननी के विभिन्न गुणों में दो गुण मुख्य हैं, पहला सृजन और दूसरा विनाश। दोनोँ ही रूप शक्ति की सर्वोच्चता के प्रतीक हैं।
ये सभी को याद रखना चाहिए कि जब हम जननी को भोग रहे हैं और जब उसको भोगने की अति हो जाती है तो फिर सृजन की परिचायक जननी विनाश का कारण बनती है। इतिहास गवाह है जिसने जननी को अनुचित भोगा उसका विनाश निश्चित रूप से हुआ है।
इस पुस्तक को लिखने का उद्देश्य यही है कि हम जिम्मेदार बनें। जननी को भोगने की प्रवृति को त्यागें।
पेड़, पौधे, पर्यावरण और समाज में नारी के प्रति संवेदनशील बनें।
इस पुस्तक को लिखने की प्रेरणा मुझे मेरे घर की छत पर सुबह से शाम तक कलरव करती गौरेया, जिनसे मैंने ‘ प्रेम’ के वास्तविक रूप को जाना,और मेरे कमरे की खिड़की से दूर बहती राजस्थान और मध्यप्रदेश के मध्य सीमा बनाती, मध्यभारत के पठार से गुजरती चंबल नदी है। जिससे मैंने जननी की सृजन और विनाश की क्षमता को समझा व महसूस किया और उसके प्रभाव को भी देखा।
Reviews
There are no reviews yet.