पीलीभीत जिले के परंपरागत होली गीत
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वर्तमान के बदलते परिवेश में पीलीभीत ही नही अपितु संपूर्ण भारत देश के हर जिले या क्षेत्रों में दिन व दिन हमारी संस्कृति का स्वरूप बदलता जा रहा है। इसके साथ ही परंपरागत लोक नृत्यों व लोक गीतों आदि का प्रचलन या रुझान भी नये युवाओं में न के बराबर देखने को मिलता है, जिसके कारण दिन व दिन ये अपने अस्तित्व को खोते चले जा रहे हैं। इन्ही सब तथ्यों को ध्यान में रखकर इस पुस्तक को लिखा गया है, जिससे कि ऐसे युवा जो इन लोक नृत्यों, गीतों आदि में रूचि रखते हैं वे इन्हें सीखें और इनके अस्तित्व को बनाये रखें।
प्रस्तुत पुस्तक में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ग्राम काजरबोझी व इसके आस-पास के क्षेत्रों में प्रचलित व फाल्गुन मास में गायी जाने बाली ४२ चौपई अर्थात होली गीतों का बिस्तार से वर्णन किया गया है। हिन्दी में दोहा, सोरठा व चौपाई छन्दों आदि से तो सभी परिचित हैं लेकिन रूहेलखंड क्षेत्र में होली के पावन अवसर पर फाल्गुन के महीने में ग्रामीण अंचल के लोग साज-बाज (ढोलक, मंजीरों, झांझों) के साथ हाथों में मोर पंख से बनी मूंठों आदि को लिए इकट्ठा होकर एक अलग प्रकार का लोक नृत्य व गायन पेश करते हैं, जिसे चौपई के नाम से जाना जाता है। ग्रामीण अंचल में गाई जाने वाली चौपई, चौपाई छन्द से पूर्णतः भिन्न होती है। सामान्यतः चौपाई छंद के प्रत्येक पद में १६-१६ मात्राएं होती हैं लेकिन चौपई के प्रत्येक पद में १६-१६ मात्राओं का होना अनिवार्य नही है। क्योंकि चौपई गाते समय इसमें गायन व लय का विषेश ध्यान रखा जाता है, जिसके कारण चौपई में चौपाई छंद के विपरित प्रत्येक पद में मात्राएं घट बढ़ जाती हैं।
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