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शब्द शृंखला

349.00

ISBN NO:-978-93-5850-039-4

यह धकतवब लेखक के द्ववरव धलखव गयव है। ”अधिषेक प्रजवपधत“
इस धकतवब को शब्ोिं के उस अनमोल रत्न कव बोि करवते हुए
धलखव गयव है जो इस आिुधनक कवल के प्रधत सहवनुिूधत और
एक सरलतम शब्ोिं कव परस्पर सिंर्वद सूत्र हैं। आपके धनजी
जीर्न में जो घट रहव है अथर्व जो धकसी सयोिंग से हो रहव है उस
धर्धि पर आिवररत कधर्तवओिं कव एक शब् श्रिंखलव आपके धलए
रचव गयव है जो सरल शब् उपवय से व्यर्खित धकयव गयव है। –
इस धकतवब धपतव के उस उपकवर – में मवतव ( शब् श्रिंखलव )
प्रेम को अि उसध व्यक्त धकयव गयव है जो सरवहनीय है। –
सकवरवत्मक ऊजवा के शब्ोिं के उस उत्तेजनव यन्त्र को िवधपत
धकयव गयव है जो एक धर्द्यवथी धकसी धर्शेष कवया के धलए सिंघषा
कर रहे व्यखक्त अथर्व धकसी सवमवन्य पररश्मी को उसके कवया
के प्रधत परस्पर एक सकवरवत्मक ऊजवा प्रिवर् से जोे े रखने के
धलए प्रेररत करतव है।

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