चमेली
₹249.00
Isbn-978-93-6175-608-5
लेखिका – विष्णुप्रिया जेना
अनुवादिका – मंजुला अस्थाना महंती
यह कहानी मात्र एक कहानी नहीं है, बल्कि समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। यह सच है कि कई स्त्रियाँ पेट की भूख को शांत करने के लिए अपनी अस्मिता को अनजान व्यक्तियों के हाथों में सौंप देती हैं। गणिका का जीवन एक ऐसा जीवन है जहाँ स्वप्न पनपने का कोई अवसर नहीं होता। जीवन के अंत तक, अंधेरी गलियाँ ही उनका आशियाना बनकर रह जाती हैं।
समाज के ताने और अपमान के घूंट पीकर, वे अंदर ही अंदर घुटती रहती हैं। बिना किसी पहचान के, वे मिट्टी में मिल जाती हैं। इस समाज में अनगिनत चमेलियों ने अपने जीवन की आहुति दे दी है, केवल पेट की आग को बुझाने के लिए।
लेकिन परेश बाबू जैसे देवता पुरुष के होने से, ऐसी स्त्रियों के जीवन का संघर्ष कुछ हद तक कम हो सकता है। उनकी सहानुभूति और समर्थन से, वे अपने जीवन को एक नई दिशा दे सकती हैं। यह कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि हम समाज में ऐसी स्त्रियों के लिए क्या कर सकते हैं, जो अपने जीवन को संघर्ष में जीने को मजबूर हैं।
सच तो यह है कि कोई भी अपनी खुशी से गणिका का रूप नहीं सजाती। गणिका का जीवन भी सरल नहीं है, उन्हीं के संघर्षों के परिणामस्वरुप समाज की अन्य माँ-बहनें अपने घरों में सुरक्षित रहती है। एक तरह से देखा जाए तो यह गणिकाएं भी समाज सेविका ही है।
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