गुफ़्तगू ज़रूरी है
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मन के भाव जब अभिव्यक्ति पा लेते हैं तो वही कविता या कहानी बन सामने आ जाते हैं। मैंने जो देखा, अनुभव किया, मेरी कविताएं उन्हीं का प्रतिरूप हैं। लिखने की कला मैंने अपने पूज्य पिता जी, लाला बद्रीप्रसाद जी से विरासत में पाई है। छोटी आयु में ही पृष्ठ रंगने आरंभ कर दिए थे। प्रस्तुत पुस्तक मेरी चौदहवीं पुस्तक है। चार सांझे संकलन एवं बाकी एकल हैं। इस पुस्तक में विभिन्न भाव लहरियां हैं जो सागर की छाती पर लहरों सी बह रही हैं।
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