कान्हा(संपूर्ण जीवन का संक्षेप रूप)
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भगवान श्रीकृष्ण हमारी संस्कृति के एक अद्भुत एवं विलक्षण महानायक हैं। ऐसा प्रेम जो अटूट बनकर सदा के लिए धरती पर अमर रह गया। उनके जीवन की प्रत्येक लीला में, प्रत्येक घटना में एक ऐसा विरोधाभास दिखता है जो साधारणतः समझ में नहीं आता है। यही उनके जीवन चरित्र की विलक्षणता है। ज्ञानी ध्यानी जिन्हें खोजते हुए हार जाते हैं, जो न ब्रह्म में मिलते हैं, न पुराणों में और न वेद की ऋचाओं में, वे मिलते हैं ब्रजभूमि की किसी कुंज- निकुंज में राधारानी के पैरों को दबाते हुए- यह श्रीकृष्ण के चरित्र की विलक्षणता ही तो है कि दे जजन्मा होकर भी पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। मृत्युंजय होने पर भी मृत्यु का वरण करते हैं। श्रीकृष्ण, हिन्दू धर्म में भगवान है। वे विष्णु के 8वें अवतार माने गए हैं। कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी उनको जाना जाता है। कृष्ण निष्काम कर्मयोगी, आदर्श दार्शनिक, स्थितप्रज्ञ एवं देवी संपदाओं से ‘सुसज्जित महान पुरुष थे। उनका जन्म द्वापरयुग में हुआ था। उनको इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष, युगपुरुष या युगावतार का स्थान दिया गया है। कृष्ण के
समकालीन महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित श्रीमद्भागवतः और महाभारत में कृष्ण का चरित्र विस्तृत रूप से लिखा गया है। भगवद्गीता कृष्ण और अर्जुन का संवाद है जो ग्रंथ आज भी पूरे विश्व में लोकप्रिय है।
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