राम जी से राम राम
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राम जी से राम राम
सफर कठिन था , नहीं समझ थी कैसे करना है? क्या करना है ? बस मन में उमंग थी कुछ अद्भुत करना है । राम जी को प्रणाम किया हनुमान जी से प्रार्थना की प्रभु साथ दीजिएगा। कहते हैं ईश्वर की मर्जी के बगैर एक पत्ता तक नहीं हिलता । फिर ये तो बात थी राम जी की।
हम लेखकगण इतने श्रेष्ठ भी नहीं होते कि ईश्वर को दर्शा सकें। बस ईश्वर से विनती है कि हमें कृतार्थ करें।
आप लोग सोच रहे होंगे कि मैं ये युद्ध जीतने जैसी बात क्यों कर रही। मेरे लिए ये बहुत श्रेष्ठ कार्य था और मन अंदर से व्यथित था ,उसमें एक अलग ही तूफान आया था । फिर मैंने श्रीराम जी के चरित्र को स्मरण किया और निकल पड़ी इस सफर के लिये 5 दिन तक मैं इस सफर में अकेली थी कोई साथी सह लेखक नहीं मिल रहे थे । हर रोज ईश्वर से प्रार्थना करती पुनः प्रयास करती 8 जनवरी से लोग जुड़ना तैयार हुए और महिमा देखिए 15 जनवरी तक स्थान से अधिक लोग के नाम आ गये मेरे पास । उसके बाद दूसरा पड़ाव शुरू हुआ मैं टाइपिंग कर रही सेव कर रही पुनः खोलने पर फाइल में कुछ
नहीं ।दो तीन दिन यही चलता रहा मैं हताश हो रही थी फिर रोज सुबह हनुमान जी के पाठ करने लगी और विनती कि प्रभु साथ दीजिएगा रात को 2 बजे तक कार्य किया। अंततः हम सभी लेखकगण सफल हो सके प्रभु जी के लिए उपहार बनाने में।
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